राजपाल यादव को जब हंसने के मिले थे ₹500 दिल खुशी से झूम उठा था
राजपाल यादव को जब हंसने के मिले थे ₹500 दिल खुशी से झूम उठा था ₹500 पाकर
राम गोपाल वर्मा की फिल्म जंगल मैं छोटा सा किरदार निभाया था राजपाल यादव ने लेकिन छोटा सा किरदार और उनका एक डायलॉग गला काटने वाला हर किसी के दिल में उतर गया| ज़हन पर छा गया और दर्शकों को राजपाल यादव का चेहरा याद रह गया|
छोटे छोटे किरदार निभाते निभाते कब राजपाल यादव की शख्सियत बड़ी हो गई खुद उनको को भी पता नहीं चला लेकिन उन्हें अपने स्ट्रगल डेज बहुत अच्छी तरह से याद है जब एक- एक रुपए की अहमियत हुआ करती थी उनकी जिंदगी में|
दिल्ली में एनएसडी से पास आउट करके राजपाल यादव मुंबई आ गए अपने चार दोस्तों के साथ काम ढूंढने के लिए फिल्म इंडस्ट्री में| चारों दोस्त एक साथ रहा करते थे और इन चारों के बीच एक एग्रीमेंट हुआ था कि 1 साल तक कोई किसी को छोड़कर नहीं जाएगा क्योंकि पैसे सबके बीच में डिवाइड हुए थे जिससे इनका खर्चा चल सके उस लिहाज से किसी एक का भी जाना सब पर बोझ बढ़ा देता|
राजपाल बताते हैं कि वह चारों दोस्त एक साथ घर से निकलते थे स्ट्रगल करने के लिए ऑफिस- ऑफिस पैदल ही जाया करते थे| कंधे पर एक बैग होता था जिसमें पानी और कुछ खाने की चीजें होती थी और यह चारों दोस्त काफी मशहूर हो गए थे फिल्मों के ऑफिसस में|
संडे का वह दिन था सब आराम से बैठे थे कि अचानक एक कॉल आया
ज्यादातर फिल्मों के ऑफिस संडे को बंद होते हैं उस लिहाज से राजपाल यादव और उनके तीन दोस्त घर में आराम से बैठे थे तभी अचानक से पेजर पर मैसेज आया| राजपाल ने जब पलट कर फोन किया तो सामने से आवाज आई कि तुम वही चारों लोग हो ना जो एक साथ काम के लिए घूमते हो राजपाल ने हामी भर दी |सामने वाले ने कहा कि तुम चारों मढ़ आईलैंड आ जाओ वहां सूचक बंगलो है उसमें शूटिंग चल रही है वहां एक काम निकला है|
खुशी-खुशी राजपाल यादव अपने चारों दोस्तों के साथ सूचक बंगलो पता करते हुए मढ़ आईलैंड पहुंच गए| वहां चारों को एक सीन मिला जिसमें उनके चेहरे भी ठीक से दिखाई नहीं दे रहे थे और उस सीन में इन चारों को सिर्फ हंसना था|
हंसने का वह सीन भी कोई बहुत बड़ा नहीं था
हंसने का वह सीन भी कोई बहुत बड़ा नहीं था कुछ ही मिनट का वह सीन था जहां पर इन्हें हंसते रहना था| हंसते हंसते वह सीन भी खत्म हो गया और इन लोगों का काम भी पूरा हो गया|
राजपाल यादव और उनके तीनों दोस्तों को हंसने के बदले पांच ₹500 मिले जिस को पाकर उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था क्योंकि उस टाइम पर ₹500 भी काफी मायने रखते थे struggle कर रहे लोगों के लिए|
राजपाल बताते हैं कि ₹500 पाकर हम लोग इतना खुश हो गए कि हंसने के लिए इतने रुपए मिले की संडे के साथ-साथ आगे के कुछ दिन भी आराम से गुजर जाएंगे|
उन ₹500 की अहमियत आज भी राजपाल यादव को याद है| आज एक बड़ा नाम बन चुके हैं राजपाल लेकिन खाना बनाना आज भी नहीं भूले क्योंकि चारों दोस्तों के बीच में सबसे अच्छा खाना राजपाल यादव ही बनाते थे|तो खाने की पूरी जिम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर थी| राजपाल बताते हैं कि आज भी जब मौका मिल जाता है तो वह अपने घर पर अपने हाथों से ही खाना बनाते हैं|