आखिरी ख्वाहिश Dev Anand की जो पूरी भी हुई
आखिरी ख्वाहिश Dev Anand की जो पूरी भी हुई, जीते जी नहीं बल्कि मरने के बाद कि वह ख्वाहिश थी देव आनंद की जो पूरी भी हुई/
26 सितंबर 1923 में जन्मे थे Dev Anand और 100 साल पूरे कर लिए Dev Anand ने/ पिछले दिनों Dev Anand की बर्थडे बहुत धूमधाम से मनाई गई जहां पर वहीदा रहमान सेंटर ऑफ़ अट्रैक्शन थी क्योंकि वहीदा रहमान को सबसे पहला ब्रेक देवानंद के साथ मिला था और कई फिल्में उन्होंने देव साहब के साथ की और उनकी यादें हमेशा से ही बहुत शानदार रही है देव साहब के साथ जिसे उन्होंने बयान भी किया/
बहुत सारी बातें Dev Anand की लोगों को पता है लेकिन उसमें Dev Anand की एक बात बहुत ही कम लोगों को और उनके करीबी लोगों को ही पता थी और वह थी उनकी आखिरी ख्वाहिश जो उन्होंने जताई थी अपने निधन से पहले/ उस आखिरी ख्वाहिश के बारे में आज हम आपको बताते हैं वह क्या थी/
सदाबहार हीरो के तौर पर आज भी मशहूर हैं Dev Anand
लोग सिर्फ इतना भी नाम ले लें सदाबहार तो लोग समझ जाते हैं कि देवानंद की बात होने जा रही है क्योंकि सदाबहार हीरो के तौर पर Dev Anand को ही सब जानते हैं/
अपनी आखिरी ख्वाहिश हर शख्स चाहता है की पूरी हो और देवानंद की भी आखिरी ख्वाहिश ऐसी थी जिसे वह पूरा करना चाहते थे लेकिन वह ख्वाहिश जीते जी पूरी नहीं हो सकती थी उनकी आखिरी ख्वाहिश उनके मरने के बाद की थी/
देव आनंद चाहते थे कि उनके मरने के बाद उनकी शक्ल दुनिया के सामने ना आए /यानी कि जब वह प्राण त्याग चुके हो उस वक्त उनके चेहरे की कोई तस्वीर या उनके चेहरे को कोई भी बाहर का इंसान ना देख सके और उन्होंने यह ख्वाहिश जताई थी कि उनके मरने के बाद उनकी कोई भी तस्वीर दुनिया के सामने ना आए जिसमें वह दुनिया को छोड़ चुके हो/
उनका मानना था कि दुनिया उनको हमेशा सदाबहार हीरो के तौर पर प्यार करती आई है/
उनके जलवो को अपनी आंखों में सजाटी आई है / ऐसे में वह नहीं चाहते थे कि उनके प्राण त्यागने के बाद का चेहरा लोग देखें और उसी को अपने दिल दिमाग में बैठा ले क्योंकि उनका मानना था कि इंसान कितना भी खूबसूरत हो लेकिन मरने के बाद की जो छवि है वही सबके दिलों दिमाग पर बैठ जाती है/
इसलिए वह नहीं चाहते थे कि उनके मरने के बाद उनकी शक्ल कोई देखे और यही वजह है की देवानंद के निधन के वक्त की या उसके बाद की कोई भी तस्वीर किसी ने नहीं देखी /उनकी डेड बॉडी तो जरूर देखी कॉफिन में लेकिन उनका चेहरा किसी ने नहीं देखा/
अपने आखिरी वक्त में काफी बीमार चल रहे थे और उनकी ख्वाहिश थी कि वह मुंबई में नहीं बल्कि बाहर देश में अपना इलाज कारए और वहीं पर उनका अंतिम संस्कार भी किया जाए क्योंकि वह जानते थे कि मुंबई में रहने पर किसी को रोक नहीं जा सकता उनके पास आने से/
ख़ासतौर से निधन के बाद तो/ इस वजह से उन्होंने दो बातों का निर्णय लिया एक तो उन्होंने देश के बाहर अंतिम सांस लेने का और अपनी ख्वाहिश भी जाता दी कि उनके निधन के बाद उनकी कोई तस्वीर या उनका चेहरा किसी को भी ना दिखाई जाए/ उनकी आखिरी ख्वाहिश उनके घर वालों ने पूरी भी की और आप कहीं पर भी देख लीजिए तो देवानंद की निधन की कोई तस्वीर आपको नजर नहीं आएगी/ इस तरह से देव साहब की आखिरी इच्छा पूरी हुई उनके निधन के बाद/