हिंदी फिल्में अंग्रेजी में बनाते हैं अनुराग कश्यप ने कसा तंज आज के फिल्म मेकर्स पर
”हिंदी फिल्में अंग्रेजी में बनाते हैं” दिल्ली में एक फिल्मी फंक्शन में अनुराग कश्यप और डायरेक्टर सुधीर मिश्रा पहुंचे थे और यहां पर उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री की वह सच्चाई बयान की है जिसको सुनने के बाद हंसी भी आ रही थी और दुख भी हो रहा था/
कहने को तो हिंदी फिल्म इंडस्ट्री है और यहां पर हिंदी फिल्में बनती हैं लेकिन और जिस तादाद में हिंदी फिल्में हर साल बनती हैं और रिलीज की जाती हैं और देखा जाए तो सक्सेस का रेशियो बहुत काम है बॉक्स ऑफिस पर उसके पीछे वजह क्या है यह अनुराग कश्यप ने और सुधीर मिश्रा ने बताया/
ऑडियंस चिल्लाया करती है कि उसे कुछ हटकर फिल्म देखनी है/ कोई नया सब्जेक्ट देखना है ऑफबीट फिल्म देखनी है लेकिन जब ऑफबीट फिल्में बनती हैं जिनका बजट भी काम होता है सब्जेक्ट नया होता है उसके बावजूद बॉक्स ऑफिस पर वह फिल्में पानी नहीं मांगती/ इसके पीछे भी ऑडियंस का ही हाथ होता है क्योंकि ऑडियंस यह सोचती है कि थिएटर में जाने से अच्छा है जब यह फिल्म ओट पर आएगी तो घर पर बैठकर देखेंगे /
फिल्में फ्लॉप होने का एक रीजन यह भी है जो अनुराग कश्यप और सुधीर मिश्रा ने बताया
आज के फिल्म मेकर्स पर अनुराग कश्यप ने जमकर हल्ला बोला उन्होंने बताया कि आज की जनरेशन हिंदी फिल्में बना रही है लेकिन सोचती इंग्लिश में /यहां तक की सेट पर भी सीन इंग्लिश में डिस्कस किए जाते हैं/ तो जाहिर है कैरेक्टर की फीलिंग कहां से आएगी जो हिंदी बोल रहा है लेकिन सीन इंग्लिश में समझ रहा है/
उर्दू छोड़िए हिंदी भी गायब हो रही है
पहले की फिल्मों में जो डायलॉग होते थे उनमें उर्दू हिंदी मिक्स होती थी और स्क्रिप्ट भी उर्दू या हिंदी में लिखी जाती थी तब जाकर यादगार और ऐतिहासिक फ़िल्में बनती थी
आज जो फिल्म की स्क्रिप्ट लिखी जाती है वह या तो अंग्रेजी में लिखी जाती है या फिर रोमन लैंग्वेज में लिखी जाती है
आज के दौर में उर्दू तो छोड़िए हिंदी भी replace की जा रही है/ आज की जनरेशन आज के फिल्म मेकर्स उर्दू और हिंदी दोनों को रिप्लेस कर रहे हैं अंग्रेजी से और बना रहे हैं हिंदी फिल्में/
सुधीर मिश्रा और अनुराग कश्यप की फिल्मों की खास बात यह होती है कि दोनों की फिल्मों में स्क्रिप्ट से लेकर सेट तक सब हिंदी भाषा में ही बात करते हैं/ कोई भी सीन ना तो इंग्लिश में लिखा जाता है और नहीं इंग्लिश में समझाया जाता है/
इस मामले में रीजनल फिल्मों को सलाम है क्योंकि वह अपनी भाषा को ही सब कुछ समझते हैं/ उस पर गर्व करते हैं रीजनल फिल्म मेकर्स में कोई भी इंफेरियारिटी कंपलेक्स का शिकार नहीं है/
वह जानते हैं कि वह किस भाषा के लिए बना रहे हैं और कौन सी भाषा बोलनी है सेट पर भी और सीन लिखते हुए भी/ यह तो हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में नया चलन शुरू हुआ है यहां पर बनानी तो हिंदी फिल्में लेकिन अंग्रेजी बोलते हुए और यह शो करता है कि आज मार्क्स कितना इंफेरियारिटी कंपलेक्स के शिकार है/