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Kader khan का बचपन भीख मांग कर गुजरा

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Kader khan का बचपन भीख मांग कर गुजरा

Kader khan का बचपन भीख मांग कर गुजरा हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में  कादर खान का नाम बेहद अदब और लिहाज से लिया जाता है/वह जितने बेहतरीन एक्टर थे उतने ही बेहतरीन लेखक भी थे और उन्होंने बहुत सारी उर्दू की किताबें लिखी हैं/ जिससे जाहिर होता है कि वह किस कदर ज्ञानी इंसान थे/

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एक बड़ी मिसाल है कादर खान सभी के लिए जिस मुकाम पर हमने अपने कादर खान को देखा है /वह मुकाम Kader khan ने खुद बनाया है /वह भी गरीबों की रेखा से नीचे रहते हुए /उनका बचपन बहुत गरीबी देखता हुआ बड़ा हुआ है/

बचपन इतनी गरीबी से गुजर रहा था कि घर में दो वक्त की रोटी भी नहीं थी/माता-पिता दोनों अलग हो चुके थे/माता-पिता की आपस में बनती नहीं थी/Kader khan अपनी माता के पास रहते थे और मां कादर खान को पिता के पास भेजती थी जब घर में कुछ भी खाने को नहीं होता था /की जाकर कुछ ले आओ और जब Kader khan अपने पिता के पास जाते थे तो पिता भी बेहद गरीब थे वह यह कह कर Kader khan को वापस कर देते थे की कुछ नहीं है उनके पास इसीलिए वह उनकी मां से अलग हुए हैं/अगर उनके पासकुछ होता तो वह सब साथ में रहते /

वह कहते कि उनके पास भी कुछ नहीं है खाने के लिए और इस तरह से वह कादर खान को खाली हाथ ही अपनी चौखट से वापस भेज देते थे/उस वक्त Kader khan की उम्र महज 5 साल की रही होगी/

वक्त ऐसे मोड़ पर ले आया था Kader khan के बचपन को

की जहां में भीख मांगना पड़ रहा था और वह सबके सामने हाथ नहीं फैलाते थे वह दूर के मोहल्ले में एक मस्जिद के इमाम के पास चले जाते थे उनके सामने अपना हाथ फैलाते थे/

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Kader khan का बचपन मुंबई के कमाठीपुरा इलाके में गुजारा है और यह वह गलियां है जो बहुत बदनाम है आज भी/ यहां से वह दूर के मोहल्ले डोंगरी जाया करते थे जब घर में कुछ नहीं होता था खाने को/ डोंगरी की एक मस्जिद में एक इमाम साहब थे और उनके पास जाकर कादर खान अपने हाथ फैलाते थे/

 मस्जिद के इमाम साहब हमेशा कादर खान की मदद करते थे

कादर खान बताते हैं कि उमर उनकी बहुत कम थी 5 से 6 साल रही होगी और इतना छोटा बच्चा कमाठीपुरा से डोंगरी तक पैदल जाता था और लौट कर आता था सिर्फ इसलिए की वहां जाएंगे तो इतने पैसे मिल जाएंगे की घर मेंकुछ दिनों का राशन लेकर आ सके/

डोंगरी में इमाम साहब जिनको उस वक्त तकरीबन ₹6 मिला करते थे उनमें से वह ₹2 कादर खान के हाथ में रख देते थे और Kader khanउन दो रुपए को लेकरअपने सीने से लगाकर घर लेट अते थे और उसी से कुछ दिनों का सामान खरीदते थे खाने पीने का/

उन दिनों को कादर खान कभी नहीं भूले /जो भूलने वाले भी नहीं थे अपने बचपन के दिनों को याद करके कादर खान की आंखों में आंसू आ जाया करते थे/एक ब्रोकन फैमिली का दर्द क्या होता है कादर खान को अच्छी तरह पता था/

अपनी मेहनत अपनी लगन से कादर खान ने अपनी पढ़ाई जारी रखी और धीरे-धीरे उनका रुझान एक्टिंग की तरफ हुआ /जहां पर वह पैसा कमाने के लिए आए थे नाम और शोहरत तो बाद में उनके साथ जुड़ गई लेकिन उनका अहम मकसद था था रुपया कामना जिससे उन्होंने जो गरीबी बचपन में देखी वह जवानी में ना देखनी पड़े/